बुधवार, 28 मई 2008

एक शब्द...


एक शब्द...
थर-थर कांपता-सा,
पन्ने पर गिरा।
एक कहानी...
कविता के सुर में कही गई और नहीं कहीं गई,
जैसी बातों में पूरी हुई।
नाटक के से सुर में मैंने उसे,
डरते-डरते पढ़ा।
कहीं एक बच्चे ने,
थमे हुए पानी में एक पत्थर फैंका...।
और कहीं दूर,
अबाबील नाम की चिड़िया उड़ गई।

आप देख सकते हैं....

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