
मेरे हाथों की रेखाएँ,
तुम्हारे होने की गवाही देती हैं
जैसे मेरी मस्तिष्क रेखा....
मेरी मस्तिष्क रेखा,
तुम्हारे विचार मात्र से,
अन-शन पे बैठ जाती है।
मेरी मस्तिष्क रेखा,
तुम्हारे विचार मात्र से,
अन-शन पे बैठ जाती है।
और मेरी जीवन रेखा
वो तुम्हारे घर की तरफ मुड़ी हुई है।
मेरी हृदय रेखा
तुम्हारे रहते तो ज़िन्दा हैं,
पर तुम्हारे जाते ही धड़्कना बंद कर देती हैं।
बाक़ी जो इधर उधर बिखरी रेखाएं हैं
उनमें कभी मुझॆ तुम्हारी आंखें नज़र आती हैं
तो कभी तुम्हारी तिरछी नाक़।
पंडित मेरे हाथों में,
कभी अपना मनोरंजन तो कभी
अपनी कमाई खोजते हैं,
क्योंकि....
मेरे हाथो की रेखाएं मेरा भविष्य नहीं बताती
वो तुम्हारा चहरा बनाती हैं,
पर तुम्हें पाने की भाग्य रेखा
मेरे हाथों में नहीं है।