
मुझे हर बार मानव होने में कितना वक्त लगता है।
मैं हसंता हूँ....
जैसे कुछ छूट जाता है।
चुप होता हूँ...
तो कोई पास आकर फुसफुसाता रहता है।
जब तक बोलता हूँ...
कोई दिखता नहीं है।
चुप होते ही जंगली कुत्ते चारों ओर से धेर लेते है...
जैसे मैं कोई धायल जानवर हूँ।
और बाक़ी सब ताली बजाने और बजवाने के बीच के खेल हैं।
मेरे तुम्हारे, होने और नहीं होने में...
कोई एक आदमी था जो चल रहा था।
वो आज भी चलता है।
अभी... ठीक इसी वक्त...
वो मेरे बगल में खड़ा है।
नहीं वो मैं नहीं हूँ...।
मुझे तो मानव होने में बहुत वक्त लगता है।