रविवार, 13 अप्रैल 2008

भाग्य रेखा...



मेरे हाथों की रेखाएँ,
तुम्हारे होने की गवाही देती हैं


जैसे मेरी मस्तिष्क रेखा....
मेरी मस्तिष्क रेखा,
तुम्हारे विचार मात्र से,
अन-शन पे बैठ जाती है।


और मेरी जीवन रेखा
वो तुम्हारे घर की तरफ मुड़ी हुई है।


मेरी हृदय रेखा
तुम्हारे रहते तो ज़िन्दा हैं,
पर तुम्हारे जाते ही धड़्कना बंद कर देती हैं।


बाक़ी जो इधर उधर बिखरी रेखाएं हैं
उनमें कभी मुझॆ तुम्हारी आंखें नज़र आती हैं
तो कभी तुम्हारी तिरछी नाक़।


पंडित मेरे हाथों में,
कभी अपना मनोरंजन तो कभी
अपनी कमाई खोजते हैं,
क्योंकि....
मेरे हाथो की रेखाएं मेरा भविष्य नहीं बताती
वो तुम्हारा चहरा बनाती हैं,


पर तुम्हें पाने की भाग्य रेखा
मेरे हाथों में नहीं है।

5 टिप्‍पणियां:

अनूप भार्गव ने कहा…

>मेरे हाथों की रेखाएँ,
>तुम्हारे होने की गवाही देती हैं

अच्छी अभिव्यक्ति है ...

कभी ऐसे भी कहा था :
http://anoopbhargava.blogspot.com/2007/04/blog-post_14.html

बेनामी ने कहा…

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vandana khanna ने कहा…

hummm, ye bhi acchi haiiiiii

Nitya Satyanarayan ने कहा…

Poignant!

Unknown ने कहा…

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