अगर मैं तुम्हें पेंट कर सकता तो...? रंगों के इस जमघट में... कौन सा रंग हो तुम??? नीला... आसमान सा कुछ..? गुलाबी तो कतई नहीं.. या हरा.. गहरा घने पेड़ जैसा कुछ। पीला तो नहीं हो.. सफेद!!!.. नहीं, नीरस सफेद नहीं.. बादलों सा भरा हुआ सफेद। कौन सा रंग हो तुम? तुम्हें बनाते हुए...अक़्सर मैं, बीच में ही कहीं छूट जाता हूँ। उन रंगों में... उन ब्रश के चलाने में.. पकड़ा-सा जाता हूँ मैं... पहाड़ों और नदियों के बीच, खाली पड़ी जगह में कहीं। रंगों में लिपा-पुता जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ... तुम पूछती - यह क्या मैं हूँ? मैं कह देता... ’अभी यह पूरा बना नहीं है...।’ मैं कहना चाहता हूँ कि... तुम बन चुकी हो... यह तुम ही हो.. मैं तुम्हारा देर तक ’अकेले खेलना’ रंगना चाहता हूँ। नहीं तुम्हारा अभी का खेलना नहीं.. तुम्हारे बचपन का खेल..। पर.. किसी रंग में तुम अकेले मिलती हो.. तो कोई रंग महज़ तुम्हारे साथ खेलता है। तुम बन चुकी हो... पर वह रंग मैं अभी तक बना नहीं पाया जो... अकेले खेल सकें...।
www.aranyamanav.blogspot.com ( मौन में बात...) www.manavplays.blogspot.com (मेरे नाटक..)
रविवार, 17 मई 2009
रंग...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
bahut sundar manav... adbhut hai...
चले जाने के बाद अक्सर तुम अपने पीछे ढेर सारे रंग छोड जाती हो...और मैं आश्चयचकित सा तुम्हारे जाने के बाद उसे बटौरने में लगा रहता हूँ। खुशीयों का वह नीला अक्सर मेरी हथेलीयों में समाता नही तो उसे मैं झोली में भर लेता हूँ। वह हरा...तुम्हारी मुस्कुराहट का ...मैं पहले ही उठा लेता हूँ। खास तौर से समेटना चाहता हूँ मैं इतने सारे रंगो में उस पीले को....जो प्यार से तुमने मेरे गाल पर लगाया था, ठीक जाने से पहले....जो अब होठों पर उतर आया है पर हाथ में नही आता वह कभी, वह चहरे से ही चिपका रह जाता है...हां...तुम्हारी उस चुहल का कोई रंग नही मिलता मुझे कभी...और मैं अक्सर उसे खोजने में वक्त गंवा देता हूँ... जब की वह तो बादलों सा सफेद बिखरा पडा आसमान में उड जाता है तुरन्त तुम्हारे जाने के बाद...और अक्सर बारिश बनकर बरसता है बिना किसी रंग के...और मुझे भीगो कर चला जाता है तुम्हारे प्यार में....और मैं...मैं तुम्हारे सारे रंग उसके साथ मिला देता हूँ।
Behtreen
एक टिप्पणी भेजें