'अंत में सबकुछ अच्छा होगा'- का सुख,
शुरुआत कराता है।
शुरुआत अंत का सपना लेकर साथ निकलती है।
वो अंत में अंत से मिलेगी...
और फिर सब सब अच्छा होगा।
शुरुआत पैदा होने की सारी तकलीफ़े झेलती है,
वो अपने बालों को उलझाती हुई,
हर नए मोड़ पर अंत को याद करती है।
वो हंसती है, रोती है,
चिल्लाती है... कभी-कभी रुक जाती है।
कहां से वो चली थी...
और कहां तक उसे जाना है।
जैसे-जैसे अंत पास आता है,
शुरुआत अपने नए-नए रुप बदलती है,
उसकी आँखे छलक जाती है।
वो अपने बालों को सुलझाने लगती है,
वो गाती है.. मुस्कुराती है।
अंत से कहना चाहती है-
'देखो मैं आ गई'
धीमे कदमों से चलता हुआ अंत होता है।
और फिर...
सबकुछ अच्छा होने लगता है।
पर अंत...
अंत में शुरुआत को भूल जाता है।
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