मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

'हँसना, मुस्कुराना!'



अब मैं एक तरीके से मुस्कुराता हूँ,
और एक तरके से हँस देता हूँ।

जी हाँ, मैंने जिंदा रहना सीख लिया है।


अब जो जैसा दिखता है,
मैं उसे वैसा ही देखता हूँ।
जो नहीं दिखता वो मेरे लिए है ही नहीं।


अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,
मैं एक सफल मध्यमवर्गीय रास्ता हूँ।
रोज़ घर से जाता हूँ,
रोज़ घर को आता हूँ।
अब मुझ पर कुछ असर नहीं होता।


या यूँ समझ लीजिए कि,
मेरी जीभ का स्वाद छिन गया है।
अब मुझे हर चीज़ एक जैसी सफेद दिखती है।


अब मुझे कुछ पता नहीं होता,
पर 'सब जानता हूँ'- का भाव मैं अपने
चहरे पर ले आता हूँ।


हर किस्से पर हँसना, आह भरना, मैं जानता हूँ।


अब मैं खुश हूँ...
नहीं- नहीं खुश नहीं,
अब मैं सुखी हूँ- सुखी।


क्योंकि अब मैं बस जिन्दा रहना चाहता हूँ।
अब ना तो मैं उड़ता हूँ, ना बहता हूँ।
मैं रुक गया हूँ...
आप चाहे कुछ भी समझो...
मैं अब तटस्थ हो गया हूँ।
अब मैं यथार्थ हूँ।
नहीं- यथार्थ-सा हूँ।


"मुझे अपनी कल्पना की गोद में सर रखकर सो जाने दो,
मैं उस संसार को देखना चहता हूँ,
जिसका ये संसार... प्रतिबिंब है।"-
अब ये सब बेमानी लगता है।


अब तो मेरा यथार्थ...
मेरी ही पुरानी कल्पनाओं पे हँसता है।


अरे हाँ !!! आजकल मैं भी बहुत हँसता हूँ।
कभी कभी लगता है ये बीमारी है...
पर ये सोचकर फिर हँसी आ जाती है।


अब सब चीज़ जिस जगह पर होनी चाहीए...
उसी जगह पर है।
ये सब काफी अच्छा लगता है।
अच्छा नहीं,
ठीक- हाँ ठीक लगता है।


पर...
पर एक परेशानी है!
अजीब सी, अधूरी...
क्या बताऊँ... मुझे आजकल रोना नहीं आता।
अजीब लगता है ना,
पर ये अजीब सच है,
मुझे सच में रोना नहीं आता।


जैसे- अब मुझे सुख या दुख से...
कोई फ़र्क नहीं पड़ता,
क्योंकि वो जब भी आते हैं...
एक झुँझलाहट या एक हँसी से तृप्त हो जाते हैं।


अजीब बात है न...
नहीं, ये अजीब बात नहीं है,
ये एक अजीब एहसास है....
जैसा कि- आप मर चुके हो और कोई यकीन न करे।


रोज़ की तरह लोग आपसे..
बातें करें...
चाय पिलाएं...
आप के साथ धूमने जाएँ...
और सिर्फ आपको ये पता हो कि अब आप ज़िन्दा नहीं है।


मैं जानता हूँ..
ये एक रुलादेने वाला एहसास है।
पर..
आप आश्चर्य करेंगे...
फिर भी मुझे आजकल रोना नहीं आता।

4 टिप्‍पणियां:

Malay M. ने कहा…

Aapki lekhan kshmataa par aashcharya hota hai ... yeh matr apki kalam ka kaushal hai ya phir aapke sookshmaalokan ka jyon ka tyon kagaz par pratyavartan , nishchit kar paana badaa mushkil hai ... vicharon ke aasmaan main , sukh aur dukh ke baadalon ke beech achanak kaundh jaati ksheen vidyutrekha si aapki har kavita ... saara aasmaan chamak uthtaa hai par ek tees si chhoot jaati hai ... upar se kalpanaa v' yathartha ke beech itni sahaj kulaanchen ... kabhi is paale main kabhi us paale main ... jo bhi hai , bahut sunder hai ...

Yun hi behtareen likhte rahiye ... mujhe bhavishya main ek din aapki rachnaon ke kiye 'Sahitya Akadamy' jaise sammaan aate dikh rahe hain ... shubhkamnaayen ...

Abha M ने कहा…

PRABHU... kamaal hai...

Unknown ने कहा…

bahut badhiya likhni nahi aati per samajh me aati hai.

Daisy ने कहा…

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