रविवार, 24 फ़रवरी 2008

'पर्यटक..'



गीली भरी हुई आँखो के पीछे,
कौन सी नदी किस तरह के उफान पर है।
मैंने उसका उदगम कभी नहीं जाना।


मैं दर्शक था...
एक तरह का पर्यटक जैसा,
जो उन गीली भरी हुई आँखो के सामने,
बस पड़ गया था।


मैंने जाने कितनी बाढ़ें देखी हैं।
सड़क पर,

गली में,
अपनों की,

शहरों की...


'पर बारिश खत्म होगी',
'नदी शाँत होगी'- के अंत ने,
मुझे हमेशा पर्यटक ही रहने दिया।


न मैं किसी गीली भरी हुई आँखो का उदगम जान पाया।
और न ही किसी नदी को उसके अंत तक...
उसकी खाड़ी तक ही कभी छोड़ पाया।


मैं बस पर्यटक ही बना रहा।

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