गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

पतंग..



छोटे-छोटे न मालूम कितने सारे संबंधो के सिरे,
गिनता बैठा था।
जो कुछ छूट गए हैं,
ओर जो कुछ छूटने को हैं।


जो संबंध छूट गए हैं, वो कहानी बन गए हैं,
जिन्हें कहते-सुनते, हमारा वक़्त गुज़र जाता है।


पर जो संबंध छूटने को हैं,
वो अभी, इस वक्त वैसे है जैसे....
आपकी पतंग कटने के बाद,
जब कोई बच्चा आपके मांझे को कहीं ओर पकड़ लेता है।
वो उस छोर पर खड़ा होकर इंतज़ार करता है।
संबंध को न तोड़ता है, न छोड़ता ही है।
आप यहाँ पतंग कटने के दुख को भूलकर....
अपने मांझे को बचाने में लग जाते हैं।


दोनों के संबंध का तनाव, मांझे पर देखा जा सकता है।


पतंगबाज़ो के अनुसार....
जो संबंध को पहले खींचके तोड़ेगा,
उसके पास सबसे कम मांझा आएगा।


धैर्य- परिक्षा धैर्य की होती है।
क्योंकि बात कहानी में नायक होने की है।
ग़र उसने संबंध पहले तोड़ा,
तो कहानी आपकी है... ओर नायक भी आप ही हैं।
पर अग़र आपका धैर्य टूट गया...
तो पूरी ज़िन्दगी कहानी में आपकी भूमिका,
खलनायक की ही होगी।

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