गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

रेखाएं..




आदतन...
अपना भविष्य मैं अपने हाथों की रेखाओं में ट्टोलता हूँ।
'कहीं कुछ छुपा हुआ है'- सा चमत्कार,
एक छोटे बादल जैसा हमेशा मेरे साथ चलता है।
तेज़ धूप में इस बादल से हमें कोई सहायता नहीं मिलती है।
वो बस हथेली में एक तिल की तरह , पड़ा रहता है।
अब तिल का होना शुभ है,
और इससे लाभ होगा..
इसलिए इस छोटे से बादल को संभालकर रखता हूँ।
फिर इच्छा होती है, कि वहाँ चला जाऊँ...
जहाँ बारिश पैदा होती है,
बादल बट रहे होते हैं।
पर शायद देर हो चुकी है,
अब मेरी आस्था का अंगूठा इतना कड़क हो चुका है,
कि वो किसी के विश्वास में झुकता ही नहीं है।
फिर मैं उन रेखाओं के बारे में भी सोचता हूँ...
जो बीच में ही कहीं ग़ायब हो गई थी।
'ये एक दिन मेरी नियति जीयेगा'- की आशा में...
जो बहुत समय तक मेरी हथेली में पड़ी रहीं।
क्या थी उनकी नियती?
...कौन सी दुनिया इंतज़ार कर रही है, इन दरवाज़ों के उस तरफ़,

जिन्हें मैं कभी खोल नहीं पाया...।

तभी मैंने एक अजीब सी चीज़ देखी,

मैंने देखा मेरे माथे पर कुछ रेखाएँ बढ गयी हैं..अचानक...

अब ये रेखाएँ क्या हैं...क्या इनकी भी कोई नियति है, अपने दरवाज़े हैं?

...नहीं...इनका कुछ भी नहीं है,

बहुत बाद में पता चला इनका कुछ भी नहीं है...।


ये 'मौन' रेखाएँ हैं

मौन उन रेखाओं का जो मेरे हाथों में उभरी थीं,

पर मैं उनके दरवाज़े कभी खोल ही नहीं पाया।

सच ...मैने देखा है- जब भी कोई रेखा मेरे हाथों से ग़ायब हुई है,

मैने उसका मौन, अपने माथे पर महसूस किया है।
पता नहीं,
पर मुझे लगता है, यही मौन हैं, जो हमें बूढा बनाते हैं।
जिस दिन माथे पर जगह ख़त्म हो जाएगी ..
ये मौन चेहरे पर उतर आएगा,
और हम बूढे हो जाएंगें...।

2 टिप्‍पणियां:

Anujaa Shukla ने कहा…

जिस दिन माथे पर जगह ख़त्म हो जाएगी ..
ये मौन चेहरे पर उतर आएगा,
और हम बूढे हो जाएंगें...
सही है....

ALOK RANJAN RATHORE ने कहा…

बेहतरीन!!!

आप देख सकते हैं....

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