शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

बुढ़ापा...





हर आदमी कुछ समय के बाद नीचे रख दिया जाता है।
नीचे रख दिया जाना... उसे पता लग जाता है।
'अब आराम करो'- की बजाए...
'अब इंतज़ार करो'- उसे सुनाई देता है।

अलग कर दिया जाना उसे मंज़ूर है पर,
रास्ते से नीचे धकेल दिया जाना नहीं...
वो रास्ते पर वापिस आने के लिये लड़्ता है।
लड़ना..? किसके लिये..?
अपने ही रास्ते पर वापिस आने के लिए?
वो सोचता है...! थोड़ा रुक जाता है!!!
फिर लड़ना शुरु करता है,
पर अब लड़ना बदल चुका है।
'यहां किसी को आपकी ज़रुरत नहीं है'- के विरुद्ध।
'ज़रुरत हैं'- के लिए लड़ता है।
थक जाता है।

'सब ठीक है' - में -'कुछ ठीक नहीं है।'
दिखने लगता है।
'सब ठीक करने निकलता है'- पर,
चल नहीं पाता है इसलिए,
बोलना शुरु कर देता है।
बच्चा हो जाता है, खैलना शुरु कर देता है।

'यहाँ किसी को आपकी ज़रुरत नहीं है'- को भूलकर,
अपनी छोटी-छोटी ज़रुरतें ढूँढने लगता है।

धीरे-धीरे ज़रुरतें ख़त्म हो जाती है,
वो बहुत बूढ़ा हो जाता है।

तब..-'इंतज़ार करो'- की बजाए..
'सोया करो'- उसे सुनाई देता है।
और वो सो जाता है।

2 टिप्‍पणियां:

Bronzer Tanning Lotion | Tanning Beds ने कहा…

Tanning Lotion

Very interesting.

Malay M. ने कहा…

Budhapaa : Aapki abhi tak jaani saari kavitaon main , mere vichar se , sabse marmasparshi ... jab yatharth milta hai kaavya se , toh sangam itna hi anootha hota hai ... shringar ras ka virodhi nahi hoon main , per na jaane kyon mujhe jeevan ki vastavikaaon ka kathor ninad sunana hi achha lagta hai ... aapki is kavita ki panktiyaan bhari dopahar main aage aane vali sandhya chhaya ka purvavlokan karaati hain … saakshatkaar ek katu satya se ...

Aapki har rachna padhne ke baad , aapse ummeden kuch aur badhti jaati hain ... yun hi behtareen likhte rahiye ...

आप देख सकते हैं....

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