सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

'तुम्हारी उंगलियाँ...'



खामोश एक आवाज़ आती थी,
और मैं कहानी सुनना शुरु कर देता था।

कहानियाँ... हमारा पूरा संबंध ये शब्द है।
कहानियाँ...
मुझे पता ही नहीं चला कब,
तुम्हारी उंगलियों ने कहानी कहना सीख लिया।

कब...
वो कौन सा पहला मौका था,
जब तुम्हारी उंगलियां हिली थी,
और मैंने एक कहानी को बाहर निकलते हुए देखा था..
धीरे से।

वो कहानी, अब मुझे याद नहीं,
पर मुझे याद है- मैं हस दिया था।
तुमने पूछा था-
'क्यों... हँस क्यों रहे हो?'
मैंने कहा था-
'बेवजह...'
हाँ, बेवजह ही कहा था मैंने।

क्या वजह है, जो मैं ये हमारा 'कहानी का संबंध"
तुम्हीं से नहीं कह सकता हूँ,
तुम्हारा वो कौन सा हिस्सा है,
जो इसे मेरे साथ जी रहा होता है,
जिसके बारे में तुम्हें ही नहीं मालूम।
और फिर तुम आश्चर्य से पूछती हो-
'क्यों?, मुस्कुरा क्यों रहे हो?'
और मैं कह देता हूँ-
'बेवजह..'

तुम्हारी कहानियाँ...
मैंने कहानी की उस दुनियां को देखा है... जिया है।
जो तुम्हारी उंगलियां यूँ ही कह देती थीं।

मैं कभी-कभी सोचता हूँ,
कि मैं किसे ज़्यादा चाहता हूँ?
तुम्हें...
या तुम्हारी उंगलियों को जो कहानी कहती हैं।

मैंने कई बार तुम्हारी उंगलीयों पर,
अपना हाथ रख दिया है और पूछा है-
'कैसी हो?'...
बेवजह...
सच बेवजह !!!

असल में तुम्हारी कुछ कहानियाँ सच कहती हैं।
सीधा..
हमारा..
सपाट... सच।
जिसे मैं नहीं जानना चाहता।

मुझे घर में दीमक जैसे सच ठीक लगते हैं।
जो घर मैं हैं.. ये दोनों को पता है,
पर वो दिखे न..
उन्हें 'पता है'- की आड़ में रहने दो।

पर जब वो दीमक जैसे सच...
तुम्हारी उंगलीयों से बाहर कूदने लगते हैं...
तब..
मैं अपना हाथ तुम्हारी उंगलियों पे रखता हूँ,
और पूछता हूँ-
'कैसी हो... बेवजह'।

2 टिप्‍पणियां:

Malay M. ने कहा…

Kaisi ajeeb baat hai … kavita ho ya gadya , padhte padhte kho sa jaata hoon … kyon sab pahchana sa lagataa hai … pehle shabd ... phir vakya … jaise panktian aapki kalam se nahi nikal rahin balki mere man main khud mere ateet main jiye kisi na kisi pal ki aavriti ho rahi hai … pehle ek gubaar … phir use cheer kar 'is' pal se kisi pichhle 'us' pal per pahunchta main … sochta hoon , kya kahin do sarvatha anjaane vyakti bhi ek se anubhavon se guzar sakte honge …? kya hamne ek se pishpaan kiye honge …?

... Hansiye mat … jaanta hoon sahitya matr kalpana ki upaj hota hai … Cotton 5 Polyster 95 … use apne pathakon ke man main jee jaanaa hi lekhak ki sabse badi safaltaa hota hai … aap isme paarangat hain , iske liye badhaiyaan …

... Idhar , pichle pandrah dino se , aap ka likha padh rahaa hoon … pehle padhta tha utsuktaavash … phir lagaa , kuch aur … ab lagtaa hai aadat pad gayi hai … chaliye … ab aap akele beemaar nahi ... log aa rahe hain , ward bhar rahaa hai ….

Shekhar Suman ने कहा…

बेहतरीन....

आप देख सकते हैं....

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