गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

नींद...



मैंने सुनहरा सो़चा था,
वो काला निकला।


तभी नींद का एक झोंका आया,
मैंने उसे फिर सुनहरा कर दिया।


अब... सुबह होने का भय लेकर नींद में बैठा हूँ।
या तो उसे उठकर काला पाऊँ,
या हमेशा के लिए उसे सुनहरा ही रहने दूँ...
और कभी न उठूँ।

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