बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

खिड़की से आकाश...



थोड़े में बहुत कुछ देख लेना,
और बहुत कुछ होने पर, हमारा आँखे बंद कर लेना।
मैं कभी-कभी अपना सबसे खूबसूरत सपना याद करता हूँ।
मेरा सबसे खूबसूरत सपना भी कभी,
बहुत खूबसूरत नहीं था।
मेरे सपने भी- थोड़ी सी खुशी में, बहूत सारे सुख, चुगने जैसे हैं,
जैसे कोई चिड़िया अपना खाना चुगती है।
पर जब उसे एक पूरी रोटी मिलती है।
तो वो पूरी रोटी नहीं खाती है,
तब भी वो उस रोटी में से,रोटी
चुग रही होती है।
बहुत बड़े आकाश में भी हम अपने हिस्से का आकाश चुग लेते हैं..।
देखने के लिए हम बहुत खूबसूरत और बड़ा आसमान देख सकते हैं।
पर जीने के लिए...
हम उतना ही आकाश जी पाऎंगे...
जितने आकाश को हमने,
अपने घर की खिड़्की में से जीना सीखा है।

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