रविवार, 24 फ़रवरी 2008

मेरा घर...





मेरा घर दो जगह से टपकता है...



अरे!!! हँसिए मत, बात गंभीर है।
मैंने इसे ठीक कराया कई बार,
पर इसने इन्कार कर दिया हर बार।



अक्सर दूसरों की बात पर लोगों को हँसी आती है,



ठीक है-
'मेरा घर दो जगह से टपकता है,आप ही इसे ठीक करा दो'
मैं कहता हूँ।
पर फिर भी कोई यक़ीन नहीं करता।
क्योंकि ये घर हमेशा अकेले में मेरे साथ टपकता है।
पर किसी के आते ही शरमा जाता है जैसे,
टपकना बंद... क्यों?
अरे टपकना है तो हमेशा टपको,
यूँ बीच में बदं क्यों?



मेरा गुलाबी सा जवान घर,
अकेले में मेरे साथ टपकता है.... पता नहीं क्यों?



जब भी अकेले,
किसी मौसम को पकड़े घर में होता हूँ,
ये घर सूँघ लेता है जैसे....
पता नहीं कहाँ, कैसे...
कहीं बरसात हो रही होती है,
और ये घर यहाँ मेरे साथ टपकना शुरु कर देता है।



मेरा गुलाबी सा जवान घर,
अकेले में मेरे साथ टपकता है.... पता नहीं क्यों?

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