सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

'दरवाज़े...'



सबके सामने नंगा होने का डर इतना बड़ा है,
कि मैं घर हो गया हूँ।


दो खिडकी, और एक छोटे से दरवाज़े वाला।
जहाँ से, मुझे भी घिसटकर निकलना पड़ता है।


किसी के आने की गुंजाईश, उतनी ही है,
जितनी मेरे किसी के पास जाने की।


सबके अपने-अपने घर हैं।
अपने डर हैं।
इसलिए अपने किस्म के दरवाज़े हैं।

2 टिप्‍पणियां:

रजनी भार्गव ने कहा…

आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ। आपकी कविताएँ बहुत अच्छी लगीं और चित्र भी.

Daisy ने कहा…

father's day gifts online
father's day cakes online
father's day flowers online

आप देख सकते हैं....

Related Posts with Thumbnails