भीतर पानी साफ था...
साफ ठंडा पानी, कूँए की तरह,
जब हम पैदा हुए थे।
जैसे-जैसे हम बड़े होते गए,
हमने अपने कूँए में खिलौने फैंके,शब्द फैंके,
किताबें, लोगों की अपेक्षाओं जैसे भारी पत्थर....
और इंसान जैसा जीने के ढेंरो खांचे।
और अब जब हमारे कूएँ में पानी की जगह नहीं है,
तो हम कहते हैं....
ये तो सामान्य बात है।
ये तो सामान्य बात है।
1 टिप्पणी:
bahut sundar abhivkyati
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